उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव की 11 सीटों पर 21 अक्टूबर को मतदान होना है। यह उपचुनाव भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सपा के मुखिया अखिलेश यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती और कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी के लिए परीक्षा से कम नहीं है। लोकसभा चुनाव के बाद सपा और बसपा के बीच गठबंधन की गांठें खुल चुकी हैं, जिसके बाद अब ये दोनों दल अपने दम पर चुनावी समर में उतरे हैं। वहीं भाजपा और कांग्रेस को चुनाव के बाद नया प्रदेश अध्यक्ष मिला है। विधानसभा उपचुनाव के आने वाले नतीजे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के लिए भी काफी अहम साबित होंगे।
इस उपचुनाव से पहले 2018 में हुए लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव में सीएम योगी की किरकिरी हुई थी। तब सपा-बसपा ने मिलकर भाजपा को शिकस्त दी थी। इस बार सपा और बसपा अलग-अलग लड़ रहे हैं। चुनौती इन दोनों के सामने भी हैं। इसके अलावा प्रियंका की अगुआई में चल रही कांग्रेस के लिए भी खुद को साबित करने की चुनौती है। वर्ष 2017 के विधानसभा चनुाव में इन 11 सीटों में भाजपा के पास 9 सीटें थीं, जबकि एक-एक सीट पर सपा और बसपा का कब्जा था।
उपचुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूरी ताकत झोंके दी थी। सभी सीटों पर उन्होंने आक्रामक तरीके से प्रचार किया है। दरअसल योगी 2018 में हुए उपचुनावों की टीस खत्म करना चाहते हैं। तब हुए लोकसभा के उपचुनावों में भाजपा ने योगी की सीट गोरखपुर और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की संसदीय सीट फूलपुर भी गंवा दी थी। इसके साथ ही कैराना लोकसभा सीट और नूरपुर विधानसभा सीट भी भाजपा हार गई थी। योगी नहीं चाहेंगे कि एक बार फिर वही हश्र हो।